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सौन्दर्य की नदी नर्मदा' अमृतलाल वेगड़ द्वारा लिखित यात्रा वृतान्त है। इस यात्रा वृतान्त की मुख्य बातें निम्नलिखित है-
👉अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा की प्रथम पदयात्रा 1977 में प्रारंभ की और अंतिम पद यात्रा 1987 में की थी।
👉नर्मदा की पदयात्रा के प्रारंभ के समय लेखक की आयु 50 वर्ष की थी।
👉नर्मदा को शिवतन्या माना गया है ।
👉नर्मदा शिव के नीलकंठ से उत्पन्न हुई।
👉लेखक नर्मदा की यात्रा के लिए घर से निकल पड़ते हैं और जहां छोड़ते हैं वहीं से अगली बार फिर शुरू कर देते हैं और कहते हैं, ' लो मां नर्मदे, लगाम तुड़ाकर मैं फिर आ गया।'
👉नर्मदा के दर्शन के संबंध में लेखक ने कहा है, "जन्म अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपत भेल"
👉नर्मदा यात्रा के संबंध में लेखक ने लिखा है "मेरी इस यात्रा के 100 साल बाद तो क्या 25 साल बाद भी कोई इसकी पुनरावृत्ति नहीं कर सकेगा। 25 साल में नर्मदा पर कई बांध बन जाएंगे और इसका सैकड़ो मील लंबा तट जलमग्न हो जाएगा। न वे गांव रहेंगे न पगडंडियां। पिछले 25000 वर्षों में नर्मदा तट का भूगोल जितना नहीं बदला है, उतना आने वाले 25 वर्षों में बदल जाएगा ।"
👉नर्मदा की परिक्रमा करने वाले यात्रियों को परकम्पावासी कहा गया है।
👉अन्न बांटने के व्रत को सदाव्रत कहा गया है।
नर्मदा यात्रा के विभिन्न चरण
१. जबलपुर से मंडला
२. मंडला से छिंनगांव
३. छिनगांव से अमरकंटक
४. अमरकंटक से डिंडोरी
५. डिंडोरी से महाराजपुर(मंडला)
६. महाराजपुर से ग्वारीघाट(जबलपुर)
७. ग्वारीघाट से बरमानघाट
८. बरमानघाट से सांडिया
९. सांडिया से होशंगाबाद
१०. होशंगाबाद से हंडिया
११. हंडिया से ओंकारेश्वर
१२. ओंकारेश्वर से खलघाट
१३. खलघाट से बोरखेड़ी
१४. बोरखेड़ी से केली
१५. केली से शूलपाणेश्वर
१६. शूलपाणेश्वर
१७. शुलपाणेश्वर से कबीरबड़
१८. कबीरबड़ से विमलेश्वर
१९. विमलेश्वर से मीठीतलाई(समुद्र यात्रा)
२०. मीठीतलाई से कोलियाद
२१. कोलीयाद से भरूच
१. जबलपुर से मंडला
👉22 अक्टूबर 1977 को ग्वारीघाट से यात्रा शुरू की।
👉इस यात्रा में लेखक के साथ पांडे जी, लेखक के दो छात्र यादवेंद्र और सूर्यकांत थे।
👉 इस चरण की यात्रा 15 दिन की थी।
२. मंडला से छिनगांव :-
👉 यह यात्रा मंडला से छिनगांव तक की है।
👉 इस यात्रा में लेखक के साथ यादवेंद्र है।
👉 यह यात्रा 10 अक्टूबर 1978 को प्रारम्भ हुई।
👉 लिंगाघाट में पश्चिम वाहिनी नर्मदा थोड़ी देर के लिए पूर्व वाहिनी हो गई है। इसलिए इसकी धारा को यहाँ सूरजमुखी धारा कहते हैं ।
३. छिनगांव से अमरकंटक:-
👉 यहाँ अमरकंटक से पहले नर्मदा का सबसे पहला एवं सबसे ऊंचा प्रपात 'कपिलधारा' प्रपात है ।
👉 लेखक ने यहाँ कल्याण दास जी के आश्रम में दीपावली मनाकर यात्रा सम्पन्न की।
👉 यह यात्रा मंडला से अमरकंटक तक लगातार चली ।
४. अमरकंटक से डिंडौरी:-
👉 पिछली यात्रा के छह महीने पश्चात अमरकंटक से यात्रा प्रारम्भ की ।
👉 अब लेखक नर्मदा के उत्तर तट से दक्षिण तट पर आ गए ।
👉 अब तक लेखक नर्मदा के उद्गम की ओर चल रहे थे, अब उद्गम से संगम की ओर चले ।
👉 अमरकंटक का नाम मेकल भी है।
👉 इसलिए नर्मदा को मेकलसुता भी कहा गया है।
👉 यहाँ नर्मदा एवं गोमती का संगम है।
👉 यहाँ लछमनमड़वा में एक साध्वी ने लेखक द्वारा नर्मदा की यात्रा नौकरी के कारण एक साथ पूरी न करने की मजबूरी के संबंध में कहा-" बेटा, बूंदी का लड्डू पूरा खाओ तो भी मीठा लगता है और चूरा खाओ तो भी मीठा लगता है इसका दुःख न करना ।"
५. डिंडोरी से महाराजपुर(मंडला):-
👉डिंडोरी से मंडला का मार्ग अत्यंत दुर्गम है तो सुंदर भी है। नर्मदा का यहां मानो बालकांड पूरा होता है और सुंदरकांड शुरू होता है ।
👉डिंडोरी से 8 अक्टूबर 1979 को चले ।
👉 मुंडी में पुरुषों का सैला, स्त्रियों का रीना एवं दोनों का सम्मिलित नृत्य करमा देखा।