शनिवार, 4 नवंबर 2023

स्तम्भ लेखन

स्तम्भ लेखन का अर्थ:- समाचार पत्रों में विशेष विषयों पर एक खास शैली में प्रसिद्ध लेखकों के  स्वतंत्र लेखन को स्तम्भ के रूप में नियमित प्रकाशित किया जाता है, उसे स्तम्भ लेखन कहते हैं।

स्तम्भ लेखन की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
१. स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन का एक रूप है ।
२. स्तंभ लेखन प्रसिद्ध लेखकों द्वारा एक विशेष शैली में लिखा जाता है।
३. समाचार पत्रों में स्तंभ नियमित प्रकाशित किए जाते हैं।
४. स्तंभ लेखन में लेखक के स्वतंत्र विचार होते हैं।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

मंदाक्रान्ता छन्द

मंदाक्रांता छंद के लक्षण/विशेषताएं :-

मंदाक्रांता( माभनातातगागा)

१. यह एक वर्णिक छंद है।
२. इसके प्रत्येक चरण में 17-17 वर्ण होते हैं।
३. इसमें 4-6-7 पर यति होती है।
४. इसमें क्रमश: मगण, भगण, नगण, दो तगण एवं दो गुरु होते हैं।

उदाहरण:-

"तारे डूबे, तम टल गया, छा गई व्योम लाली।
पंछी बोले, तमचर जगे, ज्योति फैली दिशा में ।
शाखा डोली, सकल तरु की, कंज फूले सरों में ।
धीरे-धीरे, दिनकर कढ़े, तामसी रात बीती॥"

शिखरिणी छंद

शिखरिणी छंद के लक्षण/ विशेषताएं:-

शिखरिणी(यमनसभलगा)

१. यह एक वर्णिक छंद है।
२. इसके प्रत्येक चरण में 17-17 वर्ण होते हैं।
३. इसमें 6-11 पर यति होती है।
४. इसमें क्रमशः यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, लघु एवं गुरु होते हैं।

उदाहरण:-
"बड़ा ही प्यारा है, जगत भर में भारत मुझे।
सदा शोभा गाऊं,  पर हृदय की प्यास न बुझे ॥
तुम्हारे गीतों को, मधुर सुर में गा मन भरूं।
नवा माथा मेरा, चरण रज माथे धरुं॥"

रविवार, 29 अक्टूबर 2023

पत्रकारीय लेखन हेतु सावधानियाँ

पत्रकारीय लेखन हेतु निम्नलिखित सावधानियां रखी जानी चाहिए-
१. वाक्य छोटे एवं सरल हों।
२. आम बोलचाल की भाषा एवं शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।
३. प्रचलित लोकोक्तियां एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
४. अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी जरूरी है, इसलिए जाने-माने लेखकों की रचनाएं पढ़नी चाहिए।
५. लेखन में शुद्धता के साथ-साथ विचारों की तारतम्यता होनी आवश्यक है।
६. लिखते समय यह ध्यान रखना  चाहिए कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों, और तथ्यों को प्रकट करना है न कि दूसरों को प्रभावित करना ।

पत्रकारीय लेखन एवं पत्रकार के प्रकार

पत्रकारीय लेखन:-
                      पत्रकार द्वारा अपने पाठको, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएं पहुंचाने के लिए किए गए  लेखन को  पत्रकारीय लेखन कहते हैं।

पत्रकार के प्रकार:-

पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-

१. पूर्णकालिक पत्रकार
२. अंशकालिक पत्रकार
३. फ्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार

. पूर्णकालिक पत्रकार:- इसे संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है।
२. अंशकालिक पत्रकार(स्ट्रिंगर):-किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार होता है।

३. फ्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार:- फ्रीलांसर पत्रकार भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है। इनका संबंध किसी विशेष समाचार पत्र से नहीं होता ।



शनिवार, 21 अक्टूबर 2023

सौन्दर्य की नदी नर्मदा(यात्रा-वृत्तान्त) की मुख्य बातें

           'सौन्दर्य की नदी नर्मदा' अमृतलाल वेगड़ द्वारा लिखित यात्रा वृतान्त है। इस यात्रा वृतान्त की मुख्य बातें निम्नलिखित है-
👉अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा की प्रथम पदयात्रा 1977  में प्रारंभ की और अंतिम पद यात्रा 1987 में की थी।
👉नर्मदा की पदयात्रा के प्रारंभ के समय लेखक की आयु 50 वर्ष की थी।
👉नर्मदा को शिवतन्या माना गया है ।
👉नर्मदा शिव के नीलकंठ से उत्पन्न हुई।
👉लेखक नर्मदा की यात्रा के लिए घर से निकल पड़ते हैं और जहां छोड़ते हैं वहीं से अगली बार फिर शुरू कर देते हैं और कहते हैं, ' लो मां नर्मदे, लगाम तुड़ाकर मैं फिर आ गया।'
👉नर्मदा के दर्शन के संबंध में लेखक ने कहा है, "जन्म अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपत भेल" 
👉नर्मदा यात्रा के संबंध में लेखक ने लिखा है "मेरी इस यात्रा के 100 साल बाद तो क्या 25 साल बाद भी कोई इसकी पुनरावृत्ति नहीं कर सकेगा। 25 साल में नर्मदा पर कई बांध बन जाएंगे और इसका सैकड़ो मील लंबा तट जलमग्न हो जाएगा। न वे गांव रहेंगे न पगडंडियां। पिछले 25000 वर्षों में नर्मदा तट का भूगोल जितना नहीं बदला है, उतना आने वाले 25 वर्षों में बदल जाएगा ।"
👉नर्मदा की परिक्रमा करने वाले यात्रियों को परकम्पावासी  कहा गया है।
👉अन्न बांटने के व्रत को सदाव्रत कहा गया है।

नर्मदा यात्रा के विभिन्न चरण

१. जबलपुर से मंडला
२. मंडला से छिंनगांव
३. छिनगांव से अमरकंटक
४. अमरकंटक से डिंडोरी
५. डिंडोरी से महाराजपुर(मंडला)
६. महाराजपुर से ग्वारीघाट(जबलपुर)
७. ग्वारीघाट से बरमानघाट
८. बरमानघाट से सांडिया
९. सांडिया से होशंगाबाद
१०. होशंगाबाद से हंडिया
११. हंडिया से ओंकारेश्वर
१२. ओंकारेश्वर से खलघाट
१३. खलघाट से बोरखेड़ी
१४. बोरखेड़ी से केली
१५. केली से शूलपाणेश्वर
१६. शूलपाणेश्वर
१७.  शुलपाणेश्वर से कबीरबड़
१८. कबीरबड़ से विमलेश्वर
१९. विमलेश्वर से मीठीतलाई(समुद्र यात्रा)
२०. मीठीतलाई से कोलियाद
२१. कोलीयाद से भरूच

१. जबलपुर से मंडला

👉22 अक्टूबर 1977 को ग्वारीघाट से यात्रा शुरू की।
👉इस यात्रा में लेखक के साथ पांडे जी, लेखक के दो छात्र यादवेंद्र और सूर्यकांत थे।
👉 इस चरण की यात्रा 15 दिन की थी।

२. मंडला से छिनगांव :-

👉 यह यात्रा मंडला से छिनगांव तक की है।
👉 इस यात्रा में लेखक के साथ यादवेंद्र है।
👉 यह यात्रा 10 अक्टूबर 1978 को प्रारम्भ हुई।
👉 लिंगाघाट में पश्चिम वाहिनी नर्मदा थोड़ी देर के लिए पूर्व वाहिनी हो गई है। इसलिए इसकी धारा को यहाँ सूरजमुखी धारा कहते हैं ।

३. छिनगांव से अमरकंटक:-

👉 यहाँ अमरकंटक से पहले नर्मदा का सबसे पहला एवं सबसे ऊंचा प्रपात 'कपिलधारा' प्रपात है ।
👉 लेखक ने यहाँ कल्याण दास जी के आश्रम में दीपावली मनाकर यात्रा सम्पन्न की।
👉 यह यात्रा मंडला से अमरकंटक तक लगातार चली ।

४. अमरकंटक से डिंडौरी:-

👉 पिछली यात्रा के छह महीने पश्चात अमरकंटक से यात्रा प्रारम्भ की ।
👉 अब लेखक नर्मदा के उत्तर तट से दक्षिण तट पर आ गए ।
👉 अब तक लेखक नर्मदा के उद्गम की ओर चल रहे थे, अब उद्गम से संगम की ओर चले ।
👉 अमरकंटक का नाम मेकल भी है।
👉 इसलिए नर्मदा को मेकलसुता भी कहा गया है।
👉 यहाँ नर्मदा एवं गोमती का संगम है।
👉 यहाँ लछमनमड़वा में एक साध्वी ने लेखक द्वारा नर्मदा की यात्रा नौकरी के कारण एक साथ पूरी न करने की मजबूरी के संबंध में कहा-" बेटा, बूंदी का लड्डू पूरा खाओ तो भी मीठा लगता है और चूरा खाओ तो भी मीठा लगता है इसका दुःख न करना ।"

५. डिंडोरी से महाराजपुर(मंडला):-

👉डिंडोरी से मंडला का मार्ग अत्यंत दुर्गम है तो सुंदर भी है। नर्मदा का यहां मानो बालकांड पूरा होता है और सुंदरकांड शुरू होता है ।
👉डिंडोरी से 8 अक्टूबर 1979 को चले ।
👉 मुंडी में पुरुषों का सैला, स्त्रियों का रीना एवं दोनों का सम्मिलित नृत्य करमा देखा।










वसंततिलका छंद

वसन्ततिलका(तभजजगागा):-

लक्षण/ विशेषताएं:-
१. यह एक वर्णिक छंद है।
२. इसके प्रत्येक चरण में 14-14 वर्ण होते हैं।
३. इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः तगण, भगण, दो जगण एवं दो गुरु होते हैं ।
४. इसमें 8-6 पर यति होती है ।

उदाहरण:-

" प्राणी समस्त सम है, यह भाव राखूँ I
 ऐसे विचार रख के, रस दिव्य चाखूं ।
 हे नाथ ! पूर्ण करना, मन कामना को ।
 मेरी सदैव रखना, दृढ़ भावना को ॥"