गुरुवार, 26 अगस्त 2021

काव्य दोष

अर्थ:-
        काव्य के अपकर्षक, मुख्यार्थ एवं रसानुभूति के बाधक तत्वों को काव्य दोष कहते हैं।
परिभाषाएं:- 
१. आचार्य मम्मट के अनुसार:-
                                         "मुख्यार्थ का अपकर्ष करने वाले तत्व काव्य दोष हैं।"
२. आचार्य वामन के अनुसार:-
                                         "काव्य सौंदर्य को क्षति पहुंचाने वाले तत्व काव्य दोष होते हैं।"
काव्य दोष के प्रकार
मुख्य रूप से काव्य दोष चार प्रकार के होते हैं:-
1. शब्द दोष:- वर्णों अथवा शब्दों के प्रयोग में असावधानी होने पर जब अर्थ का बोध होने में बाधा उत्पन्न हो जाए वहां शब्द दोष होता है। शब्द दोष निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
१. श्रुति कटुत्व दोष
२. च्युत संस्कृति दोष
३. ग्राम्यत्व दोष
४. अश्लीलत्व दोष
५. क्लिष्टत्व दोष
2. वाक्य दोष:-जहां किसी वाक्य अथवा वाक्यांश की रचना दोषपूर्ण होती है, वहां वाक्य दोष माना जाता है। वाक्य दोष के भेद निम्नलिखित हैं-
१. न्यूनपदत्व दोष
२. अधिकपदत्व दोष
३. अक्रमत्व दोष
४. पुनरुक्त दोष
3. अर्थ दोष:-जब काव्य का अर्थ ग्रहण करने में बाधा उत्पन्न होती है तो वहां अर्थ दोष होता है-
१. दुष्कर्मत्व दोष
4. रस दोष:- काव्य में उपस्थित ऐसे दोष जिसके कारण रसानुभूति में बाधा उत्पन्न होती है,उसे रस दोष कहते हैं।

क. शब्द दोष:-
1. श्रुतिकटुत्व दोष :- काव्य में जब कविता के पढ़ने अथवा सुनने मात्र से कानों में कटुता उत्पन्न हो जाए वहाँ श्रुतिकटुत्व दोष होता है।
जैसे:- १. "कार्त्यार्थी तब होहुँगी  मिलिहैं तब पिय आय ।"
२. "भर्त्सना से भीत हो वह बाल तब चुप हो गया ।"
३. " कवि के कठिनतर कर्म की करते नहीं हम धृष्टता ।"

2. च्युतसंस्कृति दोष:- काव्य में जब किसी शब्द या पद के प्रयोग में व्याकरण संबंधी दोष होता है, तब वहाँ च्युत संस्कृति दोष होता है ।
जैसे:- १. " फूलों की लावण्यता देती है आनन्द ।" 
         इस पंक्ति में लावण्यता शब्द व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है इस कारण च्युतसंस्कृति दोष है ।

२. " अरे अमरता के चमकीले पुतलों, तेरे वे जयनाद ।"
इस पंक्ति में तेरे के स्थान पर तुम्हारे होना चाहिए ।
3. ग्राम्यत्व दोष :- काव्य में जब ग्रामीण अथवा बोलचाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है।
जैसे:-
१. "मुंड पे मुकुट धरे सोहत है गोपाल।"
इस पंक्ति में मुंड शब्द ग्रामीण है इस कारण ग्राम्यत्व दोष है।
२. " ऐरे धनश्याम तेरे रूप की हूँ चातकी ।"

4. अश्लीलत्व दोष:- काव्य में जब अभद्रतासूचक, असाहित्यिक एवं लज्जाजनक शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ अश्लीलत्व दोष होता है।
जैसे:- " लगे थूक कर चाटने अभी अभी श्रीमान ।"

5. क्लिष्टत्व दोष :- काव्य में जब किसी कविता का अर्थ आसानी से समझ न आये वहाँ क्लिष्टत्व दोष होता है।
जैसे:- 
" कहत कत परदेशी की बात,
मंदिर अरध अवधि बदि हरि अहार चलि जात
वेद नखत ग्रह  नक्षत्र जोरी अर्ध करि सोई बनत अब खात ।"

ख. वाक्य दोष

1. न्यूनपदत्व दोष:- जहां वाक्य रचना में किसी शब्द की कमी रह जाती है, जिससे अर्थ पूरा नहीं निकलता वहां न्यूनपदत्व  दोष होता है ।
जैसे:-१. 
"तो भी सच है धर्मराज ज्वाला नयी  नहीं थी।
दुर्योधन के मन में वर्षों से खेल रही थी॥"

द्वितीय पंक्ति में ज्वाला शब्द की कमी रह जाने से न्यूनपदत्व दोष है।
२. " पानी पावक पवन प्रभु ज्यों असाधु त्यौं साधु ।"

इस पंक्ति में कवि यह कहना चाहता है कि पानी, पावक, पवन और प्रभु साधु और असाधु के साथ समान व्यवहार करते हैं, किंतु समान व्यवहार शब्द को यहां छोड़ दिया गया , जिससे अर्थ में बाधा उत्पन्न होती है ।

2. अधिकपदत्व दोष :- जब वाक्य में आवश्यकता से अधिक शब्दों या पदों का प्रयोग होता है, तब अधिकपदत्व  दोष माना जाता है।
जैसे :-
१. "पुष्प पराग से रंगकर भ्रमर करे गुंजार ।"
इसमें पुष्प शब्द का प्रयोग व्यर्थ है, क्योंकि पराग की उत्पत्ति पुष्प से ही होती है।

3. अक्रमत्व दोष :- काव्य में जब किसी शब्द का क्रम अनुचित रखा गया हो, वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
जैसे:-
१. " क्यों नहीं छलकती है करुणा तुम्हारी मूक ।"
इस पंक्ति में मूक शब्द करुणा के पहले आना चाहिए।

4. पुनरुक्त दोष:- जहां एक ही अर्थ वाले शब्दों का पुनः अनावश्यक प्रयोग होता है, वहां पुनरुक्त दोष होता है।
जैसे:- 
"कोमल वचन सभी को भाते ।
अच्छे लगते मधुर वचन ॥"
उपयुक्त पंक्ति में भाते तथा अच्छे लगते शब्दों का एक ही अर्थ है । अतः पुनरुक्त दोष है ।


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